लेखनी कविता -केहि समुझावौ सब जग अन्धा -कबीर

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केहि समुझावौ सब जग अन्धा ॥ इक दुइ होयॅं उन्हैं समुझावौं, सबहि भुलाने पेटके धन्धा । पानी घोड पवन असवरवा, ढरकि परै जस ओसक बुन्दा ॥ १॥ गहिरी नदी अगम बहै ...

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